Tuesday, April 14, 2009

Devegowda can be the Prime Minister again...

Mr. H.D.Devegowda may be the next Prime Minister of India. After the parliamentary elections, Devegowda can get the second chance to be the PM of India. It is almost clear that neither congress nor BJP can get majority in the Elections. Same condition is with their UPA or NDA. In any case, UPA or NDA are not going to touch the figure of 150. They may be limited to 125 if the Third Front does some better.

It is a false impression that Third front has too many prime ministerial candidates. It is a fact that every politician wants to hold the Supremo post but todays only Sharad Pawar has expressed his desire to become the PM. Jaylalitha, Chandrababu Naidu, are not going to leave their states. Even Laloo Prasad Yadav, Mulayam Singh Yadav, Ramvilas Paswan are also not keen to fight for the post.

In such case, the third front will have to find some other candidate. And thus Mr. Devegowda can be the choice of all.

इस तरह से बनेगी तीसरे मोर्चे की सरकार

भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की सबसे ज्यादा कोशिश तीसरे मोर्चे को कमजोर करने की है। इसके लिए ये दोनों एक दूसरे से हार मानने को तैयार हैं। बस, किसी भी कीमत पर कोई तीसरा मोर्चा वजूद में न आ पाए। इसी उधेड़बुन में ये लगी हैं। भाजपा किसी भी तरह से इस बार सत्ता में नहीं आती दिख रही है। उसकी सीटें कम होते ही एनडीए में टूट होने जा रही है। ऐसी स्थिति में उसका साथ शिवसेना भी छोड़ सकती है( अगर शरद पवार के प्रधानमंत्री बनने के अवसर बनें तो) और जनता दल यूनाइटेड भी, जो मजबूरी में ही उसे साथ लिए है। कांग्रेस भी चाहती है कि अगर जेडी यू की सीटें ज्यादा आती हैं तो वह राष्ट्रीय जनता दल की जगह उसे यूपीए में शामिल कर ले। जेडीयू के नेता भी इसके इच्छुक है, बस दिक्कत ये है कि बिहार की सरकार कांग्रेस के समर्थन से नहीं चल पाएगी क्योंकि कांग्रेस की सीटें बिहार में बहुत कम हैं।
इस बार कांग्रेस की भी हालत खस्ता है। कुल मिलाकर चांस यही बन रहे हैं कि बाकी सारे दल मिलाकर एक वृहद मोरचा बनाएंगे और कांग्रेस उसका समर्थन करे। यह भी संभव है कि शिवसेना और जेडीयू बाहर से समर्थन करें...

Monday, March 9, 2009

कहां है तीसरा मोर्चा?

जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल और भजनलाल की हरियाणा जन कांग्रेस, उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, राजस्थान में बीएसपी और जनतादल, मध्यप्रदेश में उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी, समाजवादी पार्टी और गोंडवाना पार्टियां, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल, महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, रिपब्लिकन पार्टियां, आंध्रप्रदेश में तेलंगाना राष्ट्र समिति, तेलगू देशम, बीएसपी, प्रजा राज्यम पार्टी, उड़ीसा में बीजू जनता दल, सीपीएम, केरल में वाम मोर्चा, तमिलनाडु में डीएमके और अन्ना डीएमके, कर्नाटक में जनता दल सेकुलर, समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में वाम मोर्चा और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस .... ये कुछ ऐसी पार्टियां हैं जो कांग्रेस और भाजपा की सीटें सवा सौ-सवा सौ से कम रहने पर तीसरे मोर्चे के बैनर तले एक जुट हो सकती हैं.
तीसरे मोर्चे यानी थर्ड फ्रंट की संभावनाएं और कहां-कहां किस-किस रूप में दिख रही हैं...इस बारे में आपके विचार आमंत्रित हैं

थर्ड फ्रंट की आवश्यकता

भारतीय राजनीति में थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे की आवश्यकता हमेशा रही है और हमेशा रहेगी। सिर्फ मौजूदा दौर की बात करें तो कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही तकरीबन एक समान नीतियों पर ही चल रही हैं।
दोनों की आर्थिक नीतियों में तो कोई अंतर दिखता ही नहीं है। सामाजिक आधार भी दोनों का कमोबेश एक ही है। केंद्र में जब- जब थर्ड फ्रंट की सरकारें किसी तरह से बनीं, तब तब कुछ ही दिनों बाद इन दोनों ही पार्टियों ने उन्हें मिलकर गिराया और ऐसा कुछ करने का ही मौका नहीं दिया, जिससे इन दोनों की हकीकत सामने आ सके। थर्ड फ्रंट की सरकारें ठीक से काम इसलिए भी नहीं कर पाईं क्योंकि जनता ने भी इन्हें पूरा बहुमत कभी दिया ही नहीं। ऊपर से इल्जाम ये कि ये लोग सरकार चला नहीं पाते और बार-बार मध्यावधि चुनाव होते हैं। कांग्रेस का समर्थन लेना पड़ता है तो कांग्रेस भी महत्वपूर्ण मंत्रालय अपने ही नेताओं को देने को बाध्य करती है। इसके अलावा भी सारे अहम फैसलों पर वह दखलंदाजी करती है।
इस समय चुनाव का है, वक्त है कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही मुक्ति पाने का। देखा जाये तो कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे के दलों के सहयोग से ही यूपीए और एनडीए बनाकर सत्ता पर काबिज हैं। अगर ये सारे दल यूपीए और एनडीए से अलग हो जाएं तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सत्ता से काफी दूर दिखाई देंगे। इन चुनावों में भी कांग्रेस और भाजपा अगर सवा सौ-सवा सौ सीटों तक सिमट आएं, जिसकी संभावना काफी दिख रही है तो बाकी सारे दल मिलकर आसानी से बहुमत पा सकते हैं।
थर्ड फ्रंट ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स के इस ब्लॉग के जरिए आप सभी से विचार और सुझाव आमंत्रित हैं। आइए एक ऐसी बहस छेड़ें जो कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही नेस्तनाबूद कर दे और व्यापक जनाधार वाली सरकार अस्तित्व में आए।