भारतीय राजनीति में थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे की आवश्यकता हमेशा रही है और हमेशा रहेगी। सिर्फ मौजूदा दौर की बात करें तो कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही तकरीबन एक समान नीतियों पर ही चल रही हैं।
दोनों की आर्थिक नीतियों में तो कोई अंतर दिखता ही नहीं है। सामाजिक आधार भी दोनों का कमोबेश एक ही है। केंद्र में जब- जब थर्ड फ्रंट की सरकारें किसी तरह से बनीं, तब तब कुछ ही दिनों बाद इन दोनों ही पार्टियों ने उन्हें मिलकर गिराया और ऐसा कुछ करने का ही मौका नहीं दिया, जिससे इन दोनों की हकीकत सामने आ सके। थर्ड फ्रंट की सरकारें ठीक से काम इसलिए भी नहीं कर पाईं क्योंकि जनता ने भी इन्हें पूरा बहुमत कभी दिया ही नहीं। ऊपर से इल्जाम ये कि ये लोग सरकार चला नहीं पाते और बार-बार मध्यावधि चुनाव होते हैं। कांग्रेस का समर्थन लेना पड़ता है तो कांग्रेस भी महत्वपूर्ण मंत्रालय अपने ही नेताओं को देने को बाध्य करती है। इसके अलावा भी सारे अहम फैसलों पर वह दखलंदाजी करती है।
इस समय चुनाव का है, वक्त है कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही मुक्ति पाने का। देखा जाये तो कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे के दलों के सहयोग से ही यूपीए और एनडीए बनाकर सत्ता पर काबिज हैं। अगर ये सारे दल यूपीए और एनडीए से अलग हो जाएं तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सत्ता से काफी दूर दिखाई देंगे। इन चुनावों में भी कांग्रेस और भाजपा अगर सवा सौ-सवा सौ सीटों तक सिमट आएं, जिसकी संभावना काफी दिख रही है तो बाकी सारे दल मिलकर आसानी से बहुमत पा सकते हैं।
थर्ड फ्रंट ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स के इस ब्लॉग के जरिए आप सभी से विचार और सुझाव आमंत्रित हैं। आइए एक ऐसी बहस छेड़ें जो कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही नेस्तनाबूद कर दे और व्यापक जनाधार वाली सरकार अस्तित्व में आए।
Monday, March 9, 2009
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