Monday, March 9, 2009

कहां है तीसरा मोर्चा?

जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल और भजनलाल की हरियाणा जन कांग्रेस, उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, राजस्थान में बीएसपी और जनतादल, मध्यप्रदेश में उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी, समाजवादी पार्टी और गोंडवाना पार्टियां, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल, महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, रिपब्लिकन पार्टियां, आंध्रप्रदेश में तेलंगाना राष्ट्र समिति, तेलगू देशम, बीएसपी, प्रजा राज्यम पार्टी, उड़ीसा में बीजू जनता दल, सीपीएम, केरल में वाम मोर्चा, तमिलनाडु में डीएमके और अन्ना डीएमके, कर्नाटक में जनता दल सेकुलर, समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में वाम मोर्चा और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस .... ये कुछ ऐसी पार्टियां हैं जो कांग्रेस और भाजपा की सीटें सवा सौ-सवा सौ से कम रहने पर तीसरे मोर्चे के बैनर तले एक जुट हो सकती हैं.
तीसरे मोर्चे यानी थर्ड फ्रंट की संभावनाएं और कहां-कहां किस-किस रूप में दिख रही हैं...इस बारे में आपके विचार आमंत्रित हैं

थर्ड फ्रंट की आवश्यकता

भारतीय राजनीति में थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे की आवश्यकता हमेशा रही है और हमेशा रहेगी। सिर्फ मौजूदा दौर की बात करें तो कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही तकरीबन एक समान नीतियों पर ही चल रही हैं।
दोनों की आर्थिक नीतियों में तो कोई अंतर दिखता ही नहीं है। सामाजिक आधार भी दोनों का कमोबेश एक ही है। केंद्र में जब- जब थर्ड फ्रंट की सरकारें किसी तरह से बनीं, तब तब कुछ ही दिनों बाद इन दोनों ही पार्टियों ने उन्हें मिलकर गिराया और ऐसा कुछ करने का ही मौका नहीं दिया, जिससे इन दोनों की हकीकत सामने आ सके। थर्ड फ्रंट की सरकारें ठीक से काम इसलिए भी नहीं कर पाईं क्योंकि जनता ने भी इन्हें पूरा बहुमत कभी दिया ही नहीं। ऊपर से इल्जाम ये कि ये लोग सरकार चला नहीं पाते और बार-बार मध्यावधि चुनाव होते हैं। कांग्रेस का समर्थन लेना पड़ता है तो कांग्रेस भी महत्वपूर्ण मंत्रालय अपने ही नेताओं को देने को बाध्य करती है। इसके अलावा भी सारे अहम फैसलों पर वह दखलंदाजी करती है।
इस समय चुनाव का है, वक्त है कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही मुक्ति पाने का। देखा जाये तो कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे के दलों के सहयोग से ही यूपीए और एनडीए बनाकर सत्ता पर काबिज हैं। अगर ये सारे दल यूपीए और एनडीए से अलग हो जाएं तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सत्ता से काफी दूर दिखाई देंगे। इन चुनावों में भी कांग्रेस और भाजपा अगर सवा सौ-सवा सौ सीटों तक सिमट आएं, जिसकी संभावना काफी दिख रही है तो बाकी सारे दल मिलकर आसानी से बहुमत पा सकते हैं।
थर्ड फ्रंट ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स के इस ब्लॉग के जरिए आप सभी से विचार और सुझाव आमंत्रित हैं। आइए एक ऐसी बहस छेड़ें जो कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही नेस्तनाबूद कर दे और व्यापक जनाधार वाली सरकार अस्तित्व में आए।