भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की सबसे ज्यादा कोशिश तीसरे मोर्चे को कमजोर करने की है। इसके लिए ये दोनों एक दूसरे से हार मानने को तैयार हैं। बस, किसी भी कीमत पर कोई तीसरा मोर्चा वजूद में न आ पाए। इसी उधेड़बुन में ये लगी हैं। भाजपा किसी भी तरह से इस बार सत्ता में नहीं आती दिख रही है। उसकी सीटें कम होते ही एनडीए में टूट होने जा रही है। ऐसी स्थिति में उसका साथ शिवसेना भी छोड़ सकती है( अगर शरद पवार के प्रधानमंत्री बनने के अवसर बनें तो) और जनता दल यूनाइटेड भी, जो मजबूरी में ही उसे साथ लिए है। कांग्रेस भी चाहती है कि अगर जेडी यू की सीटें ज्यादा आती हैं तो वह राष्ट्रीय जनता दल की जगह उसे यूपीए में शामिल कर ले। जेडीयू के नेता भी इसके इच्छुक है, बस दिक्कत ये है कि बिहार की सरकार कांग्रेस के समर्थन से नहीं चल पाएगी क्योंकि कांग्रेस की सीटें बिहार में बहुत कम हैं।
इस बार कांग्रेस की भी हालत खस्ता है। कुल मिलाकर चांस यही बन रहे हैं कि बाकी सारे दल मिलाकर एक वृहद मोरचा बनाएंगे और कांग्रेस उसका समर्थन करे। यह भी संभव है कि शिवसेना और जेडीयू बाहर से समर्थन करें...
Tuesday, April 14, 2009
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं
ReplyDeleteअच्छा लिखा-लिखते रहें
ReplyDeleteवोट अवश्य डालें और दो में से किसी एक तथाकथित ही सही राष्ट्रीय या यूं कहें बड़ी पार्टियों में से एक के उम्मीदवार को दें,जिससे कम से कम
सांसदो की दलाली तो रूके-छोटे घटको का ब्लैक मेल[शिबू-सारेण जैसे]से तो बचे अपना लोक-तंत्र ?
गज़ल कविता हेतु मेरे ब्लॉगस पर सादर आमंत्रित हैं।
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सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम
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narayan....narayan...narayan
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग को पढ़ने-सराहने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। आपकी प्रतिक्रियाएं मुझे प्रोत्साहित करेंगी। असहमति का भी मैं पूरा सम्मान करता हूं,अत: आलोचना का भी स्वागत है।
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